धरती कांपे, जब उठे परशुराम का फरसा,
धर्म के रक्षक हैं वो, अधर्म का संहार सा।
ना सिंहासन चाहिए, ना वैभव का मान,
धरती पर न्याय लाना ही है परशुराम का प्राण।
शस्त्र और शास्त्र का अद्भुत मेल हैं राम,
परशुराम हैं ब्राह्मण भी, और क्षत्रिय का काम ।
शांत रूप में योगी, क्रोध में काल समान,
परशुराम का नाम है, रघुकुल का अभिमान ।
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