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  • May, 16, 2025
  • by Admin

Jyeshtha Purnima on Wednesday, June 11, 2025

Jyeshtha Purnima on Wednesday, June 11, 2025
Shukla Purnima Moonrise on Purnima - 19:41
Jyeshtha Purnima Upavasa on Tuesday, June 10, 2025
 
Purnima Tithi Begins - 11:35  on  Jun 10, 2025
Purnima Tithi Ends - 13:13  on  Jun 11, 2025
 

2025 ज्येष्ठ पूर्णिमा
ज्येष्ठ मास विभिन्न पर्वों और त्यौहार के लिये अत्यधिक लोकप्रिय मास है। शास्त्रों में ज्येष्ठ शब्द का शाब्दिक अर्थ 'बड़ा' है। इसीलिये यह मास ज्येष्ठ सन्तान के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा 'ज्येष्ठा' नक्षत्र में ही भ्रमण करते हैं। ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को वट पूर्णिमा भी कहा जाता है। भारत के अनेक भागों में सुहागन स्त्रियाँ पति की दीर्घायु की कामना से वट पूर्णिमा का व्रत करती हैं। इसके अतिरिक्त यह दिन पितरों के निमित्त तर्पण और दान करने के लिये भी अत्यन्त शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा के लिये ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन का विशेष महत्व माना गया है।

वट पूर्णिमा व्रत विधि
वट सावित्री व्रत की भाँति ही पूर्णिमा के दिन भी स्त्रियाँ उत्तम सौभाग्य एवं कुल की वृद्धि हेतु व्रत एवं उपवास कर सकती हैं। सौभाग्यशाली स्त्रियों को व्रत का सङ्कल्प लेकर सम्पूर्ण शृङ्गार करके वट वृक्ष का पूजन करना चाहिये तथा वट की जड़ पर पुष्प एवं मीठा जल अर्पित करके वटवृक्ष की परिक्रमा करते हुये कच्चा सूत बाँधना चाहिये। तत्पश्चात् अपने घर के वृद्धजनों का आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिये। पूजनोपरान्त शृङ्गार का सामान किसी वृद्ध सुहागन स्त्री को दे देना चाहिये। ऐसे लोग जो सामान्य पूर्णिमा का व्रत करते हैं, वे भी वट वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का पूजन तथा मन्त्र जाप कर सकते हैं।

ज्येष्ठ पूर्णिमा बिल्वत्रि रात्रि व्रत
यह एक विशेष प्रकार का व्रत है, जिसके विधिवत पालन से सम्पूर्ण अभीष्ट सिद्ध हो जाते हैं। इस व्रत का वर्णन स्कन्दपुराण में प्राप्त होता है। जब भी ज्येष्ठ पूर्णिमा, मंगलवार के दिन पड़े तब इस व्रत को आरम्भ किया जाता है। उस दिन प्रातः काल उठकर सरसों मिश्रित जल से स्नान करें तथा बिल्ववृक्ष का गन्ध एवं पुष्पादि से पूजन करें एवं एक समय ही भोजन करें। यदि भोजन को कुत्ता, सुअर अथवा गधा देख ले, तो तुरन्त उसका त्याग कर दें। इस प्रकार आगामी एक वर्ष के दौरान सभी पूर्णिमाओं का व्रत करें। व्रत समाप्ति के दिन बिल्ववृक्ष के समीप जाकर एक पात्र में एक सेर रेत या जौ, गेहूँ, चावल एवं तिल भरें तथा दूसरे पात्र को दो वस्त्रों से ढक कर उसमें सुवर्ण निर्मित उमा-महेश्वर की मूर्ति स्थापित करें तथा दो लाल वस्त्र अर्पण कर विविध प्रकार के गन्ध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्यादि से पूजन करके -

श्रीनिकेत नमस्तुभ्यं हर प्रिय नमोऽस्तु ते।
अवैधव्यं च मे देहि श्रियं जन्मनि जन्मनि॥

इस मन्त्र से प्रार्थना करें तथा बिल्वपत्र से एक सहस्र आहुति देकर सोलह या आठ अथवा चार दम्पतियों को वस्त्रालङ्कार आदि देकर भोजन करायें तो सभी प्रकार के अभीष्ट सिद्ध हो जाते हैं।

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