गुलशन कुमार का जन्म भारत की राजधानी दिल्ली में एक पंजाबी अरोड़ा परिवार में हुआ था। उनका प्रारंभिक नाम गुलशन दुआ था| उनके पिता दिल्ली के दरियागंज बाजार में एक फ्रूट जूस विक्रेता थे। यहीं से गुलशन ने व्यवसाय की पेंचिदिगियों को सीखा| महज 23 साल की उम्र में उन्होंने अपने परिवार के मदद से एक दुकान का अधिग्रहण किया और रिकार्ड्स और सस्ते ऑडियो कैसेट बेचने शुरू कर दिया| संगीत उद्योग में एक बड़ा मक़ाम हासिल करने वाले इंसान की ये एक सामान्य शुरुआत थी| रिकार्ड्स और ऑडियो कैसेट के व्यवसाय से ठीक-ठाक मुनाफा होने लगा फिर उन्होंने खुद ही ऑडियो कैसेट बनाना शुरू कर दिया|
गुलशन कुमार ने हालांकि अपने करियर की शुरुआत छोटे स्तर पर रिकार्ड्स और कैसेट के व्यापार से की थी लेकिन कालांतर में इसी क्षेत्र में उन्होंने सफलता के नये आयाम भी स्थापित किये थे.
समय के साथ उन्होंने कैसेट बनाना भी शुरू कर दिया था. धीरे-धीरे उन्होंने “सुपर कैसेट इंडस्ट्रीज” के नाम से बिजनेस स्थापित कर लिया,जिससे उन्होंने बहुत मुनाफा कमाया.
वास्तव में उस समय प्रतिष्ठित कम्पनियों द्वारा खराब गुणवत्ता की ऑडियो टेप मार्केट में प्रचलित थी, गुलशन कुमार ने इस समस्या को कम करते हुए 1970 में कम और सस्ती दर पर अच्छी क्वालिटी की कैसेट बेचना शुरू कर दिया. इसके आलावा उन्होंने नई दिल्ली के नोएडा में म्यूजिक प्रोडक्शन कम्पनी भी शुरू की.
व्यापार के बढने के साथ ही उन्होंने विदेशों में भी अच्छी क्वालिटी की कैसेट बेचना शुरू कर दिया. जल्द ही वो इससे मिलनियर बन गये और म्यूजिक इंडस्ट्री के बिजनेस में बड़े बिजनेसमैन के रूप में पहचाने जाने लगे.
म्यूजिक इंडस्ट्री की सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने बॉलीवुड का रुख किया और बोम्बे आ गये. यहाँ उन्होंने धार्मिक गानों की कैसेट का बिजनेस शुरू किया और बहुत कम मूल्य पर इन कैसेट को बेचने लगे. इसके पीछे उनका उद्देश्य हिन्दू धर्म को आगे ले जाना था. उन्होंने हिन्दू पौराणिक कथाओं पर भी फिल्म्स बनाई थी.
गुलशन ने अपने ऑडियो कैसेट के व्यवसाय को ‘सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज’ का नाम दिया जो आगे चलकर एक बड़ा नाम बना| इसके बाद उन्होंने दिल्ली के पास नोएडा में एक ‘म्यूजिक प्रोडक्शन कंपनी’ खोल ली| 1970 के दशक में उन्होंने सस्ते दरों पर अच्छी गुणवत्ता वाले संगीत कैसेट बेचना शुरू कर दिया| यह प्रतिष्ठित संगीत कंपनियों द्वारा खराब गुणवत्ता और महंगे ऑडियो टेप के मुकाबले सस्ता और अच्चा था| इससे उनका कारोबार दिनों-दिन बढ़ता गया और आगे जाकर वह ऑडियो कैसेट का निर्यात भी करने लगे| इस शानदार सफलता से गुलशन करोडपति बन गए और संगीत उद्योग के सबसे सफल व्यक्तियों में से एक हो गए| संगीत के क्षेत्र में पैर पसारने के बाद उन्होंने अपना रुख हिंदी फिल्म उद्योग यानि ‘बॉलीवुड’ की ओर किया और मुंबई चले गए| फिल्म संगीत के साथ-साथ उन्होंने भक्ति संगीत संसार में भी अपनी जोरदार पैठ बना ली – इसका भी मूल मंत्र वही था – सस्ते और गुणवत्ता वाले कैसेट| उन्होंने हिंदू पौराणिक कथाओं से संबंधित फिल्मों और धारावाहिकों का भी प्रोडक्शन किया|
फिल्म निर्माण में उन्होंने पहला कदम वर्ष 1989 में ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ नामक फिल्म बनाकर किया| प्रेम प्रसंग पर आधारित इस फिल्म का संगीत बहुत लोकप्रिय हुआ और फिल्म भी कामयाब हो गयी| वर्ष 1990 में प्रदर्शित फिल्म ‘आशिकी’ ने सफलता के सारे कीर्तिमान तोड़ दिए| राहुल रॉय और अनु अग्रवाल द्वारा अभिनीत इस फिल्म ने अपने सुरीले संगीत से नयी बुलंदियों को छुआ| उनकी अगली कुछ फिल्में जैसे ‘बहार आने तक’ और ‘जीना तेरी गली में’ कुछ ख़ास सफल नहीं रहीं पर इनका संगीत कामयाब रहा| इसके बाद वर्ष 1991 में आमिर खान और पूजा भट्ट अभिनीत ‘दिल है की मानता नहीं’ भी बहुत कमाल नहीं कर सकी परन्तु इस फिल्म के संगीत ने सफलता के नए आयाम स्थापित किये| इस के साथ गुलशन कुमार ने फिल्म उद्योग में खुद को संगीत के बादशाह के रूप में स्थापित कर लिया। उनकी कुछ अन्य फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर विफल रही जिसमें “जीना मरना तेरे संग ” आयी मिलन की रात”, “मीरा का मोहन”, आदि शामिल है|
गुलशन कुमार को महज संगीत उद्योग में सफलता के लिए ही नहीं जाना जाता है, बल्कि उन्होंने कई नए प्रतिभाओं को पेश कर फिल्म जगत में अपना बहुमूल्य योगदान दिया| उन्होंने अपने छोटे भाई किशन कुमार को रुपहले परदे पर “आजा मेरी जान” और “ कसम तेरी कसम” जैसी फिल्मों के मध्यम उतारा| ये दोनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल साबित नहीं हुईं| पिछली दोनों फिल्मों के निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद गुलशन ने एक बार फिर अपने भाई किशन के साथ एक और फिल्म ‘सनम बेवफा’ बनाई| हालांकि इस फिल्म में भी कोई बात नहीं थी परन्तु अपने जोरदार संगीत के कारण ये फिल्म सफल रही| इस फिल्म ने अब तक संघर्षरत गायक सोनू निगम को भी नयी पहचान दी| सोनू निगम के अलावा, गुलशन कुमार ने संगीत की दुनिया को कई और प्रतिभावान गायक दिए जिनमे प्रमुख हैं कुमार शानू, अनुराधा पौडवाल और वंदना वाजपेयी|
गुलशन कुमार ने सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड (एससीआईएल) स्थापित किया जो भारत में सर्वोच्च संगीत कंपनी बन गई। उन्होंने इसी संगीत कंपनी के तहत, ‘टी-सीरीज’ संगीत लेबल की स्थापना की। आज, टी-सीरीज देश में संगीत और वीडियोज का सबसे बड़ा उत्पादक है। ‘टी-सीरीज’ का मुख्य व्यवसाय फिल्मों, रीमिक्स, पुराने गाने, भक्ति संगीत, नए जमाने के एलबम, आदि के संगीत से सम्बंधित है। यह भारतीय संगीत बाजार के लगभग 60% से अधिक हिस्से में फैला हुआ है और छह महाद्वीपों के 24 से ज्यादा देशों में संगीत का निर्यात करता है। 2500 से अधिक डीलरों के साथ, टी-सीरीज देश का सबसे बड़ा वितरण नेटवर्क है।
फिल्म उद्योग के सफल व्यवसायियों में से एक, गुलशन कुमार ने अपने धन का एक हिस्सा समाज सेवा के विभिन्न कार्यों के लिए दान करके दूसरे व्यवसायियों और उद्योगपतियों के लिए एक मिसाल कायम किया। उन्होंने श्री माता वैष्णो देवी में एक भंडारे की स्थापना की जो तीर्थयात्रियों के लिए नि: शुल्क भोजन उपलब्ध कराता है। गुलशन वित्तीय वर्ष 1992-93 में देश के शीर्ष करदाता थे। ऐसा माना जाता है की गुलशन ने मुंबई के अंडरवर्ल्ड के जबरन वसूली की मांग के आगे झुकने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उनकी हत्या कर दी गई।
12 अगस्त, 1997 को मुंबई के अंधेरी पश्चिम उपनगर जीत नगर में जीतेश्वर महादेव मंदिर के बाहर गोली मारकर गुलशन की हत्या कर दी गयी| हालाँकि मुंबई पुलिस ने हत्या की योजना के लिए संगीत निर्देशक जोड़ी नदीम-श्रवण के नदीम को अभियुक्त बनाया परन्तु अब्दुल रऊफ नामक एक अनुबंध हत्यारे ने गुलशन कुमार की हत्या के लिए पैसा प्राप्त करने की बात सन 2001 में कबूल लिया। 29 अप्रैल, 2009 को, रऊफ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। गुलशन कुमार के परिवार की इच्छा के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में किया गया।
गुलशन कुमार की मृत्यु के बाद उनके पुत्र भूषण कुमार ने सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड का पदभार संभाल लिया। उनकी बेटी, तुलसी कुमार, एक जानी-मानी पार्श्व गायिका हैं।
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